I14 मुर्गियों के प्रमुख रोग: लक्षण, बचाव और इलाज
परिचय
दोस्तों, पोल्ट्री फार्मिंग (Poultry Farming) या मुर्गी पालन आज के समय में आय का एक बहुत अच्छा जरिया बन गया है। चाहे आप छोटे पैमाने पर घर के लिए अंडे और मांस का उत्पादन कर रहे हों या बड़े पैमाने पर व्यवसाय कर रहे हों, मुर्गियों का स्वास्थ्य (Chicken Health) आपके मुनाफे और सफलता के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। लेकिन गाइस, जैसे इंसानों को बीमारियां होती हैं, वैसे ही हमारी प्यारी मुर्गियों को भी कई तरह की बीमारियां घेर सकती हैं। इन बीमारियों को समझना, उनके लक्षणों को पहचानना और समय पर रोकथाम (Prevention) और इलाज (Treatment) करना बहुत ज़रूरी है। आज हम बात करेंगे i14 यानी कि 14 ऐसी प्रमुख बीमारियों की जो मुर्गियों में आम हैं, साथ ही जानेंगे इनके लक्षण, बचाव के तरीके और इनके इलाज के बारे में। तो चलिए, शुरू करते हैं इस ज़रूरी जानकारी को।
1. रानीखेत रोग (Ranikhet Disease / Newcastle Disease)
रानीखेत रोग (Ranikhet Disease), जिसे न्यूकैसल डिजीज (Newcastle Disease) भी कहते हैं, मुर्गियों में होने वाली सबसे खतरनाक और जानलेवा बीमारियों में से एक है। यह एक वायरल बीमारी है जो बहुत तेजी से फैलती है और खासतौर पर युवा चूजों (Chicks) के लिए घातक साबित हो सकती है। इस बीमारी का मुख्य कारण पैरामाइक्सोवायरस (Paramyxovirus) है। यह वायरस सीधे संपर्क से, हवा से, दूषित भोजन और पानी से, या फिर संक्रमित पक्षियों के मल-मूत्र से फैल सकता है। इस बीमारी के प्रकोप से पोल्ट्री फार्म को भारी नुकसान हो सकता है, क्योंकि यह मृत्यु दर (Mortality Rate) को बहुत बढ़ा देती है। इसलिए, इसके बारे में जानना और बचाव के उपाय करना अत्यंत आवश्यक है। इस रोग की गंभीरता को देखते हुए, टीकाकरण (Vaccination) इसका सबसे प्रभावी बचाव है। समय पर सही टीके लगवाने से मुर्गियों को इस बीमारी से बचाया जा सकता है। अगर आपके फार्म पर कभी रानीखेत का प्रकोप हुआ है, तो तुरंत अपने पशु चिकित्सक (Veterinarian) से संपर्क करें। वो आपको सही दवाइयों और प्रबंधन (Management) के बारे में सलाह देंगे। बीमार मुर्गियों को तुरंत स्वस्थ मुर्गियों से अलग कर देना चाहिए और उनके बाड़े (Coop) को अच्छी तरह से कीटाणुरहित (Disinfect) करना चाहिए। दूषित सामग्री को नष्ट कर देना चाहिए। इस बीमारी से बचाव के लिए जैविक सुरक्षा (Biosecurity) के उपायों का कड़ाई से पालन करना चाहिए, जैसे कि फार्म पर बाहरी लोगों और वाहनों का प्रवेश नियंत्रित करना, स्वच्छता बनाए रखना आदि।
2. गंबोरो रोग (Gumboro Disease / Infectious Bursal Disease)
गंबोरो रोग (Gumboro Disease), जिसे संक्रामक बर्सा रोग (Infectious Bursal Disease - IBD) भी कहा जाता है, एक वायरल बीमारी है जो मुख्य रूप से चूजों और युवा मुर्गियों को प्रभावित करती है। यह बीमारी मुर्गियों की प्रतिरक्षा प्रणाली (Immune System) पर हमला करती है, जिससे वे अन्य संक्रमणों के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाती हैं। गंबोरो वायरस बर्सा ऑफ फैब्रिकियस (Bursa of Fabricius) नामक अंग को नुकसान पहुंचाता है, जो प्रतिरक्षा कोशिकाओं के विकास के लिए जिम्मेदार है। इस बीमारी का प्रकोप अक्सर तब होता है जब चूजों की उम्र 4 से 6 सप्ताह के बीच होती है, क्योंकि इस समय तक मां से मिले एंटीबॉडी (Maternal Antibodies) का स्तर कम हो जाता है। लक्षणों में सुस्ती, पंख फुलाकर बैठना, भूख न लगना, दस्त (Diarrhea) जिसमें सफेद या हरे रंग का मल हो सकता है, और कभी-कभी रक्तस्राव (Hemorrhage) भी देखा जाता है। बचाव के लिए टीकाकरण सबसे महत्वपूर्ण है। सही समय पर और सही प्रकार का टीका लगवाने से चूजों को गंबोरो से बचाया जा सकता है। इलाज के मामले में, गंबोरो का कोई सीधा एंटी-वायरल इलाज नहीं है। उपचार मुख्य रूप से सहायक देखभाल (Supportive Care) पर केंद्रित होता है। इसमें विटामिन और इलेक्ट्रोलाइट्स (Electrolytes) का उपयोग किया जाता है ताकि मुर्गियां संक्रमण से लड़ सकें और डिहाइड्रेशन (Dehydration) से बच सकें। स्वच्छता और जैविक सुरक्षा के उपाय भी बहुत महत्वपूर्ण हैं। संक्रमित चूजों को तुरंत अलग कर देना चाहिए और उनके बाड़ों को अच्छी तरह से साफ और कीटाणुरहित करना चाहिए। इस बीमारी से फार्म को बचाने के लिए लगातार निगरानी और स्वास्थ्य प्रबंधन बहुत जरूरी है। अगर आपको लगता है कि आपके फार्म पर गंबोरो का प्रकोप हो गया है, तो देर न करें, तुरंत पशु चिकित्सक से संपर्क करें। वे आपको उचित सलाह देंगे कि कैसे इस स्थिति को संभाला जाए और आगे ऐसी बीमारी न हो।
3. मरेक्स रोग (Marek's Disease)
मरेक्स रोग (Marek's Disease), जिसे लंगड़ा बुखार या तंत्रिका पक्षाघात (Nervous Paralysis) के नाम से भी जाना जाता है, एक गंभीर वायरल बीमारी है जो मुर्गियों के तंत्रिका तंत्र (Nervous System), आंखों और आंतरिक अंगों को प्रभावित करती है। यह बीमारी एवियन हर्पीसवायरस टाइप 1 (Avian Herpesvirus Type 1) के कारण होती है। यह वायरस बहुत संक्रामक होता है और धूल, पंखों के छिलकों (Dander) और संक्रमित पक्षियों के सीधे संपर्क से फैलता है। मरेक्स रोग का सबसे आम लक्षण है पक्षाघात (Paralysis), खासकर पैरों में, जिससे मुर्गी लंगड़ाने लगती है या बैठ जाती है। इसके अलावा, गर्दन का मुड़ना (Wry Neck), पंखों का फड़कना (Twitching of Feathers), सांस लेने में कठिनाई (Difficulty in Breathing), और आंखों में बदलाव (जैसे पुतलियों का आकार बदलना या आंखें धुंधली होना) भी इसके लक्षण हो सकते हैं। यह रोग शरीर के अंदर ट्यूमर (Tumors) भी बना सकता है, जो विभिन्न अंगों में हो सकते हैं। बचाव के लिए टीकाकरण सबसे प्रभावी तरीका है। चूजों को जन्म के 24 घंटे के भीतर मरेक्स का टीका लगाया जाता है। यह टीका बहुत प्रभावी होता है और रोग के गंभीर रूपों को रोकने में मदद करता है। इलाज के मामले में, मरेक्स रोग का कोई इलाज संभव नहीं है। एक बार संक्रमित होने के बाद, मुर्गी को ठीक करना मुश्किल होता है। इसलिए, रोकथाम पर ही पूरा ध्यान देना चाहिए। इसमें जैविक सुरक्षा के उपाय, फार्म की स्वच्छता, और बीमार मुर्गियों को तुरंत अलग करना शामिल है। यदि किसी मुर्गी में मरेक्स के लक्षण दिखाई देते हैं, तो उसे अक्सर मार दिया (Cull) जाता है ताकि बीमारी को अन्य मुर्गियों में फैलने से रोका जा सके। फार्म प्रबंधन (Farm Management) में संतुलित आहार (Balanced Diet) और तनाव-मुक्त वातावरण (Stress-free Environment) बनाए रखना भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि तनाव मुर्गियों को बीमारियों के प्रति अधिक संवेदनशील बना सकता है।
4. चेचक (Fowl Pox)
मुर्गियों में चेचक (Fowl Pox), जिसे पॉल्ट्री पॉक्स (Poultry Pox) भी कहा जाता है, एक वायरल संक्रमण है जो मुर्गियों को प्रभावित करता है। यह रोग धीरे-धीरे फैलता है और आमतौर पर घातक नहीं होता है, लेकिन यह मुर्गियों को कमजोर कर सकता है और उनके उत्पादन (Production) को प्रभावित कर सकता है। चेचक वायरस दो मुख्य रूपों में प्रकट होता है: सूखा रूप (Dry form) और गीला रूप (Wet form)।
- सूखा रूप: इसमें मुर्गियों के चेहरे, पैर और पंखों के नीचे छोटे-छोटे दाने (Pustules) दिखाई देते हैं। ये दाने धीरे-धीरे बढ़कर सूख जाते हैं और पपड़ी बन जाती है, जो बाद में गिर जाती है।
- गीला रूप: इसमें मुंह, गले और श्वास नली (Trachea) के अंदर घाव (Lesions) बन जाते हैं। इससे मुर्गियों को खाने और सांस लेने में कठिनाई हो सकती है, और गंभीर मामलों में मृत्यु भी हो सकती है।
चेचक वायरस मच्छरों (Mosquitoes) और अन्य कीटों (Insects) द्वारा फैलता है, जो संक्रमित मुर्गियों से वायरस को स्वस्थ मुर्गियों तक ले जाते हैं। इसके अलावा, सीधे संपर्क या संक्रमित उपकरणों से भी यह फैल सकता है।
बचाव के लिए टीकाकरण सबसे प्रभावी तरीका है। युवा चूजों को चेचक का टीका लगाया जाता है। इलाज के मामले में, चेचक का कोई सीधा एंटी-वायरल इलाज नहीं है। उपचार मुख्य रूप से सहायक देखभाल पर केंद्रित होता है। प्रभावित मुर्गियों को साफ पानी और नरम भोजन उपलब्ध कराना चाहिए। सूखे रूप में, पपड़ी को हटाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। गीले रूप में, यदि मुंह के अंदर घाव हैं, तो उन्हें एंटीसेप्टिक घोल (Antiseptic Solution) से साफ किया जा सकता है। संक्रमित मुर्गियों को अलग रखना और फार्म की स्वच्छता बनाए रखना भी महत्वपूर्ण है। मच्छरों और अन्य कीटों के नियंत्रण (Control) के उपाय भी बहुत जरूरी हैं ताकि वायरस के प्रसार को रोका जा सके। यदि आपके फार्म पर चेचक का प्रकोप हुआ है, तो अपने पशु चिकित्सक से सलाह लें।
5. बर्ड फ्लू (Avian Influenza)
बर्ड फ्लू (Avian Influenza), जिसे एवियन इन्फ्लूएंजा (Avian Influenza) भी कहते हैं, एक गंभीर वायरल बीमारी है जो पक्षियों, विशेष रूप से मुर्गियों और टर्की (Turkeys) को प्रभावित करती है। यह अत्यधिक संक्रामक होती है और जंगली जलीय पक्षियों (Wild Aquatic Birds) से घरेलू पक्षियों में फैल सकती है। बर्ड फ्लू के कई स्ट्रेन (Strains) होते हैं, जिनमें से कुछ हल्के लक्षण पैदा करते हैं, जबकि अन्य, जैसे कि H5N1 और H7N9, अत्यधिक रोगजनक (Highly Pathogenic) होते हैं और बड़े पैमाने पर मृत्यु का कारण बन सकते हैं।
लक्षण स्ट्रेन के आधार पर भिन्न हो सकते हैं, लेकिन उच्च रोगजनक स्ट्रेन में अचानक बड़ी संख्या में मुर्गियों की मौत, अंडे के उत्पादन में भारी गिरावट, श्वसन संबंधी समस्याएं, चेहरे और कंघी (Comb) और गलिका (Wattles) का नीला पड़ना, सूजन (Swelling), और दस्त शामिल हो सकते हैं। कम रोगजनक स्ट्रेन में अक्सर हल्के श्वसन लक्षण या कोई लक्षण नहीं दिखाई देते हैं।
बचाव के लिए जैविक सुरक्षा सर्वोपरि है। फार्मों को जंगली पक्षियों से दूर रखना, बाहरी लोगों और वाहनों के प्रवेश को नियंत्रित करना, और पूरी स्वच्छता बनाए रखना महत्वपूर्ण है। टीकाकरण कुछ देशों में नियंत्रित तरीके से उपयोग किया जाता है, लेकिन यह हमेशा प्रभावी नहीं होता और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को प्रभावित कर सकता है। इलाज के मामले में, उच्च रोगजनक एवियन इन्फ्लूएंजा के लिए कोई विशिष्ट एंटी-वायरल उपचार उपलब्ध नहीं है। प्रभावित फ्लॉक (Flock) को अक्सर नष्ट (Cull) कर दिया जाता है ताकि बीमारी को फैलने से रोका जा सके। मानव स्वास्थ्य के लिए भी बर्ड फ्लू का खतरा होता है, इसलिए सावधानी बरतना बहुत महत्वपूर्ण है। यदि आपको अपने फार्म पर बर्ड फ्लू के संदिग्ध लक्षण दिखाई देते हैं, तो तुरंत स्थानीय पशुपालन विभाग या पशु चिकित्सक को सूचित करें। अफवाहों पर ध्यान न दें और केवल आधिकारिक जानकारी पर भरोसा करें। सुरक्षा सावधानियां जैसे कि मास्क और दस्ताने पहनना, और संक्रमित पक्षियों को छूने से बचना आवश्यक है।
6. सीआरडी (CRD - Chronic Respiratory Disease)
सीआरडी (CRD), जिसे पुरानी श्वसन रोग (Chronic Respiratory Disease) के नाम से जाना जाता है, मुर्गियों में होने वाली एक आम जीवाणु (Bacterial) संक्रमण है। यह बीमारी माइकोप्लाज्मा गैलिसेप्टिकम (Mycoplasma gallisepticum - MG) नामक बैक्टीरिया के कारण होती है। सीआरडी खांसी, छींकने और सांस लेने में कठिनाई जैसे लक्षणों के लिए जाना जाता है। यह बहुत संक्रामक है और हवा के माध्यम से, दूषित भोजन और पानी से, या संक्रमित पक्षियों के सीधे संपर्क से फैल सकती है। यह रोग खासकर युवा मुर्गियों में आम है और उनके विकास को धीमा कर सकता है। लक्षणों में नाक से पानी बहना, खांसी, छींक, सांस लेते समय घरघराहट (Rales), आंखों में सूजन, और पंख फुलाकर बैठे रहना शामिल हो सकते हैं। गंभीर मामलों में, मृत्यु दर बढ़ सकती है, खासकर जब यह अन्य संक्रमणों के साथ हो।
बचाव के लिए टीकाकरण एक महत्वपूर्ण उपाय है, खासकर उन क्षेत्रों में जहां यह बीमारी आम है। जैविक सुरक्षा और अच्छी स्वच्छता बनाए रखना भी बहुत जरूरी है। तनाव कम करना और संतुलित आहार प्रदान करना मुर्गियों को इस बीमारी से लड़ने में मदद कर सकता है। इलाज के लिए, एंटीबायोटिक्स (Antibiotics) का उपयोग किया जाता है। पशु चिकित्सक टेरामाइसिन (Terramycin), ऑक्सीटेट्रासाइक्लिन (Oxytetracycline), या एरिथ्रोमाइसिन (Erythromycin) जैसे एंटीबायोटिक्स की सलाह दे सकते हैं। दवाएं पीने के पानी या फीड (Feed) में मिलाकर दी जाती हैं। इलाज का कोर्स पूरा करना महत्वपूर्ण है ताकि संक्रमण पूरी तरह से खत्म हो जाए। बीमार मुर्गियों को अलग कर देना चाहिए और उनके बाड़े को साफ और कीटाणुरहित करना चाहिए। अंडे देने वाली मुर्गियों में, सीआरडी अंडे के उत्पादन को भी कम कर सकता है। इसलिए, इस बीमारी को नियंत्रित करना पोल्ट्री फार्मर्स के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। सीआरडी का प्रबंधन एक सतत प्रक्रिया है जिसमें नियमित निगरानी, सही समय पर निदान (Diagnosis), और उचित उपचार शामिल है।
7. कोक्सीडियोसिस (Coccidiosis)
कोक्सीडियोसिस (Coccidiosis), जिसे खूनी दस्त के नाम से भी जाना जाता है, मुर्गियों में होने वाली एक आम परजीवी (Parasitic) बीमारी है। यह बीमारी ईमेरिया (Eimeria) नामक प्रोटोजोआ (Protozoa) के कारण होती है, जो मुर्गियों की आंतों (Intestines) में रहते हैं और उन्हें नुकसान पहुंचाते हैं। यह बीमारी विशेष रूप से युवा और कमजोर चूजों को प्रभावित करती है। कोक्सीडिया पर्यावरण में बहुत लंबे समय तक जीवित रह सकते हैं, जिससे यह बीमारी फार्म पर बार-बार फैल सकती है। संक्रमण मुख्य रूप से मल-मूत्र के संपर्क से होता है। गीला और गंदा वातावरण कोक्सीडिया के विकास के लिए अनुकूल होता है।
लक्षणों में सुस्ती, भूख न लगना, पंख फुलाकर बैठना, कमजोरी, और दस्त शामिल हैं। दस्त में खून (Blood) दिखाई दे सकता है, जो इस बीमारी का एक विशिष्ट संकेत है। गंभीर मामलों में, वजन कम होना, विकास धीमा होना, और मृत्यु भी हो सकती है।
बचाव के लिए कोक्सीडियोस्टेट्स (Coccidiostats) का उपयोग फीड में किया जाता है। ये दवाएं कोक्सीडिया के विकास को रोकती हैं। टीकाकरण भी एक विकल्प है, खासकर जैविक सुरक्षा वाले फार्मों के लिए। अच्छी स्वच्छता और सूखा वातावरण बनाए रखना बहुत महत्वपूर्ण है। बाड़े की नियमित सफाई और गीलेपन को रोकना कोक्सीडिया के प्रसार को कम करने में मदद करता है। जैविक सुरक्षा के उपाय भी आवश्यक हैं।
इलाज के लिए, एंटी-कोक्सीडियल दवाएं (Anti-coccidial drugs) जैसे कि सल्फोनामाइड्स (Sulfonamides) या एमप्रोलीयम (Amprolium) का उपयोग किया जाता है। ये दवाएं पीने के पानी में मिलाकर दी जाती हैं। विटामिन ए और के (Vitamin A and K) की खुराक भी फायदेमंद हो सकती है। बीमार मुर्गियों को तुरंत अलग कर देना चाहिए। कोक्सीडियोसिस का प्रबंधन चुनौतीपूर्ण हो सकता है क्योंकि परजीवी दवाओं के प्रति प्रतिरोधी (Resistant) विकसित कर सकते हैं। इसलिए, दवाओं का बारी-बारी से उपयोग करना और रोकथाम पर ध्यान केंद्रित करना महत्वपूर्ण है।
8. एवियन कोलेरा (Avian Cholera)
एवियन कोलेरा (Avian Cholera), जिसे फाउल कॉलरा (Fowl Cholera) भी कहते हैं, एक गंभीर जीवाणु (Bacterial) संक्रमण है जो पास्चुरेला मल्टोसिडा (Pasteurella multocida) नामक बैक्टीरिया के कारण होता है। यह रोग अत्यधिक संक्रामक है और अचानक बड़े पैमाने पर मौतें पैदा कर सकता है। यह अलग-अलग उम्र की मुर्गियों को प्रभावित कर सकता है, लेकिन वयस्क मुर्गियों में इसका प्रकोप अधिक देखा जाता है। यह बीमारी मुख्य रूप से दूषित पानी, भोजन, या धूल के माध्यम से फैलती है। संक्रमित जंगली पक्षी भी इस बीमारी के वाहक हो सकते हैं।
लक्षण अचानक प्रकट हो सकते हैं। इसमें अचानक कमजोरी, सुस्ती, भूख न लगना, तेज बुखार, दस्त (अक्सर हरे या सफेद रंग के), सांस लेने में कठिनाई, और गर्दन मुड़ना शामिल हो सकते हैं। कुछ मुर्गियों में जॉइंट्स में सूजन (Swollen Joints) भी देखी जा सकती है। संक्रमित पक्षियों की अचानक मौत भी इसका एक प्रमुख लक्षण है, अक्सर बिना कोई पूर्व लक्षण दिखाए।
बचाव के लिए जैविक सुरक्षा और अच्छी स्वच्छता सबसे महत्वपूर्ण उपाय हैं। फार्म को साफ-सुथरा रखना, दूषित पानी और भोजन को हटाना, और जंगली पक्षियों को फार्म से दूर रखना आवश्यक है। टीकाकरण भी कुछ स्थितियों में प्रभावी हो सकता है, लेकिन यह हमेशा 100% गारंटी नहीं देता। इलाज के लिए, एंटीबायोटिक्स का उपयोग किया जाता है। सल्फोनामाइड्स (Sulfonamides), टेरामाइसिन (Terramycin), या एनरोफ्लोक्सासिन (Enrofloxacin) जैसी दवाएं डॉक्टर की सलाह पर दी जा सकती हैं। बीमार मुर्गियों को तुरंत अलग कर देना चाहिए और उनके बाड़े को अच्छी तरह से कीटाणुरहित करना चाहिए। मृत मुर्गियों का सुरक्षित निपटान (Disposal) भी बहुत महत्वपूर्ण है ताकि संक्रमण न फैले। एवियन कोलेरा का प्रबंधन मुश्किल हो सकता है क्योंकि बैक्टीरिया पर्यावरण में लंबे समय तक जीवित रह सकता है। नियमित निगरानी और त्वरित कार्रवाई सफलता की कुंजी है।
9. एफएमडी (Fowl Typhoid)
एफएमडी (Fowl Typhoid), जिसे फाउल टाइफाइड भी कहते हैं, एक गंभीर जीवाणु (Bacterial) संक्रमण है जो साल्मोनेला गैलिनेरम (Salmonella gallinarum) नामक बैक्टीरिया के कारण होता है। यह बीमारी जानलेवा हो सकती है और मुर्गियों में मृत्यु दर को काफी बढ़ा सकती है। यह रोग अलग-अलग उम्र की मुर्गियों को प्रभावित करता है, लेकिन वयस्क मुर्गियों में यह अधिक गंभीर हो सकता है। एफएमडी मुख्य रूप से दूषित भोजन, पानी, या अंडे के माध्यम से फैलता है। यह संक्रमित पक्षियों के मल-मूत्र से भी फैल सकता है।
लक्षणों में सुस्ती, भूख न लगना, कमजोरी, पंख फुलाकर बैठना, पीला या हरा दस्त, गर्दन का मुड़ना, और सांस लेने में कठिनाई शामिल हो सकते हैं। पर (Feathers) चिकने और गंदे दिख सकते हैं। आंखें आधी बंद रह सकती हैं। अंडे का उत्पादन कम हो सकता है और अंडे की गुणवत्ता भी खराब हो सकती है। अचानक मौतें भी हो सकती हैं। पोस्टमॉर्टम (Postmortem) में लिवर (Liver) पर पहेलीदार धब्बे (Focal Necrotic Spots) और तिल्ली (Spleen) का सूजा हुआ होना इसके सामान्य लक्षण हैं।
बचाव के लिए जैविक सुरक्षा और सख्त स्वच्छता बनाए रखना महत्वपूर्ण है। फार्म को साफ-सुथरा रखना, दूषित भोजन और पानी को हटाना आवश्यक है। नए पक्षियों को फार्म में लाने से पहले उन्हें क्वारंटाइन (Quarantine) करना चाहिए। टीकाकरण कुछ क्षेत्रों में उपलब्ध है और प्रभावी हो सकता है।
इलाज के लिए, एंटीबायोटिक्स का उपयोग किया जाता है। सल्फोनामाइड्स (Sulfonamides), टेरामाइसिन (Terramycin), या ऑक्सीटेट्रासाइक्लिन (Oxytetracycline) जैसी दवाएं पशु चिकित्सक की सलाह पर दी जाती हैं। इलाज का कोर्स पूरा करना महत्वपूर्ण है। बीमार मुर्गियों को तुरंत अलग कर देना चाहिए और उनके बाड़े को अच्छी तरह से कीटाणुरहित करना चाहिए। मृत मुर्गियों का सुरक्षित निपटान आवश्यक है। एफएमडी के प्रबंधन में लगातार निगरानी और त्वरित कार्रवाई की आवश्यकता होती है। संक्रमित पक्षियों को झुंड से हटाना और संक्रमित सामग्री को नष्ट करना बहुत जरूरी है।
10. एस्परगिलोसिस (Aspergillosis)
एस्परगिलोसिस (Aspergillosis), जिसे थ्रश (Thrush) या फेफड़ों का फंगल संक्रमण (Fungal Infection of Lungs) भी कहते हैं, एक गंभीर फंगल बीमारी है जो एस्परगिलस फ्यूमिगेटस (Aspergillus fumigatus) नामक फंगस के कारण होती है। यह फंगस गीली, सड़ने वाली सामग्री (Damp, Decaying Material), जैसे कि खराब चारा (Spoiled Fodder), गीली पुआल (Wet Straw), या पुरानी खाद (Old Litter) में पनपता है। यह बीमारी खासकर चूजों और युवा मुर्गियों में अधिक देखी जाती है, क्योंकि उनकी प्रतिरक्षा प्रणाली अभी पूरी तरह से विकसित नहीं होती है। यह बीमारी सांस के माध्यम से फैलती है, जब मुर्गियां फंगस के बीजाणुओं (Spores) को सांस के साथ अंदर लेती हैं।
लक्षणों में सांस लेने में कठिनाई, तेज और छिटपुट खाँसी, घरघराहट (Wheezing), नाक से पानी बहना, सुस्ती, भूख न लगना, और वजन कम होना शामिल हो सकते हैं। गंभीर मामलों में, तंत्रिका संबंधी लक्षण भी दिखाई दे सकते हैं, जैसे कि संतुलन खोना या पक्षाघात (Paralysis)। आंखों में सूजन या धुंधलापन भी देखा जा सकता है। मृत्यु दर अक्सर उच्च होती है, खासकर युवा चूजों में।
बचाव का सबसे अच्छा तरीका है स्वच्छ और सूखा वातावरण बनाए रखना। खराब और गीले चारे का उपयोग न करें। पुआल या बिछाली (Litter) को सूखा और साफ रखें। अच्छी वेंटिलेशन (Ventilation) सुनिश्चित करें ताकि फंगस के बीजाणु हवा में न फैलें। बीमार पक्षियों को तुरंत अलग कर देना चाहिए। फार्म की नियमित सफाई और कीटाणुशोधन बहुत महत्वपूर्ण है।
इलाज के मामले में, एस्परगिलोसिस का इलाज बहुत मुश्किल होता है। एंटीफंगल दवाएं (Antifungal Drugs) जैसे कि केटोकोनाज़ोल (Ketoconazole) या एम्फोटेरिसिन बी (Amphotericin B) का उपयोग किया जा सकता है, लेकिन ये अक्सर महंगी होती हैं और हमेशा प्रभावी नहीं होतीं। सहायक देखभाल, जैसे कि पोषक तत्वों से भरपूर भोजन और साफ पानी, महत्वपूर्ण है। बीमार पक्षियों को मारना (Culling) अक्सर सबसे व्यावहारिक विकल्प होता है ताकि बीमारी को फैलने से रोका जा सके और अन्य मुर्गियों को बचाया जा सके।
11. फाउल कोलेरा (Fowl Cholera) – (यह एवियन कोलेरा के समान है, लेकिन कभी-कभी अलग तरीके से वर्गीकृत किया जाता है, हम यहाँ एक संक्षिप्त पुनरावृत्ति के रूप में लेते हैं)
फाउल कोलेरा (Fowl Cholera), जैसा कि हमने पहले भी संक्षिप्त रूप से चर्चा की है, पास्चुरेला मल्टोसिडा (Pasteurella multocida) बैक्टीरिया के कारण होने वाली एक खतरनाक जीवाणु संक्रमण है। यह बीमारी अचानक और तेजी से फैलती है और बड़ी संख्या में पक्षियों की मौत का कारण बन सकती है। यह वयस्क मुर्गियों को अधिक प्रभावित करती है, लेकिन किसी भी उम्र के पक्षी संक्रमित हो सकते हैं।
मुख्य कारण बैक्टीरिया का संक्रमित पानी, भोजन, या धूल के संपर्क में आना है। जंगली पक्षी भी इस बीमारी को फैला सकते हैं।
लक्षणों में अचानक कमजोरी, सुस्ती, भूख न लगना, तेज बुखार, हरे या सफेद रंग के दस्त, सांस लेने में कठिनाई, और कंघी और गलिका का नीला पड़ना शामिल हैं। गर्दन का टेढ़ा होना और जोड़ों में सूजन भी देखी जा सकती है। बिना किसी पूर्व चेतावनी के अचानक मौतें होना इसका एक प्रमुख संकेत है।
बचाव के लिए उच्च स्तर की जैविक सुरक्षा, फार्म की संपूर्ण स्वच्छता, और जंगली पक्षियों से दूरी बनाए रखना सबसे आवश्यक है। टीकाकरण कुछ हद तक सुरक्षा प्रदान कर सकता है।
इलाज में एंटीबायोटिक्स का प्रयोग किया जाता है, जैसे कि सल्फोनामाइड्स या क्विनोलोन (Quinolones)। बीमार पक्षियों को तुरंत अलग करना और सभी दूषित सामग्री को साफ और कीटाणुरहित करना महत्वपूर्ण है। मृत पक्षियों का सुरक्षित निपटान अनिवार्य है। इस बीमारी का प्रबंधन बहुत चुनौतीपूर्ण होता है और इसमें तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता होती है।
12. इन्फ्लूएंजा (Influenza) – (बर्ड फ्लू के अलावा अन्य प्रकार)
मुर्गियों में इन्फ्लूएंजा (Influenza), बर्ड फ्लू (एवियन इन्फ्लूएंजा) के अलावा, अन्य इन्फ्लूएंजा वायरस के कारण भी हो सकता है। ये वायरस श्वसन तंत्र को प्रभावित करते हैं। हालांकि बर्ड फ्लू जितना घातक नहीं, फिर भी ये मुर्गियों के स्वास्थ्य और उत्पादन पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकते हैं। ये वायरस हवा द्वारा, संक्रमित पक्षियों के संपर्क, या दूषित सतहों से फैल सकते हैं।
लक्षणों में खांसी, छींक, नाक से पानी बहना, सांस लेने में कठिनाई, पंख फुलाकर बैठना, और उत्पादन में कमी (जैसे अंडे का उत्पादन) शामिल हो सकते हैं। आंखों में सूजन भी देखी जा सकती है।
बचाव के लिए अच्छी स्वच्छता, उचित वेंटिलेशन, और तनाव-मुक्त वातावरण बनाए रखना महत्वपूर्ण है। बीमार पक्षियों को झुंड से अलग करना और फार्म की नियमित सफाई आवश्यक है। जैविक सुरक्षा के उपाय भी महत्वपूर्ण हैं।
इलाज में आमतौर पर सहायक देखभाल शामिल होती है। विटामिन और इलेक्ट्रोलाइट्स का उपयोग किया जाता है ताकि मुर्गियां संक्रमण से लड़ सकें। एंटीबायोटिक्स का उपयोग द्वितीयक जीवाणु संक्रमण (Secondary Bacterial Infections) को रोकने या उनका इलाज करने के लिए किया जा सकता है। पशु चिकित्सक से सलाह लेना महत्वपूर्ण है ताकि सही निदान और उपचार सुनिश्चित हो सके।
13. आंत्रशोथ (Enteritis)
आंत्रशोथ (Enteritis), जिसे आंतों की सूजन (Inflammation of the Intestines) भी कहते हैं, कोई एक विशेष बीमारी नहीं है, बल्कि यह आंतों में सूजन की स्थिति को दर्शाता है। यह सूजन विभिन्न कारणों से हो सकती है, जिनमें जीवाणु (Bacteria), वायरस (Viruses), परजीवी (Parasites), फंगस (Fungi), विषाक्त पदार्थ (Toxins), या अनुपयुक्त आहार (Improper Diet) शामिल हैं। यह स्थिति मुर्गियों में दस्त (Diarrhea) का एक आम कारण है।
लक्षण सूजन के कारण पर निर्भर करते हैं, लेकिन सामान्य तौर पर इसमें दस्त (जो पानी जैसा, चिपचिपा, या खूनी हो सकता है), भूख न लगना, सुस्ती, वजन कम होना, डिहाइड्रेशन, और पंख फुलाकर बैठना शामिल हैं। गंभीर मामलों में, निर्जलीकरण (Dehydration) और इलेक्ट्रोलाइट असंतुलन (Electrolyte Imbalance) के कारण मृत्यु भी हो सकती है।
कारण का निदान करना महत्वपूर्ण है ताकि सही इलाज किया जा सके। यदि कारण जीवाणु है, तो एंटीबायोटिक्स का उपयोग किया जाएगा। यदि परजीवी हैं, तो एंटी-पैरासिटिक दवाएं दी जाएंगी। यदि कारण वायरल है, तो सहायक देखभाल पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा। आहार में बदलाव या विषाक्त पदार्थों को हटाना भी आवश्यक हो सकता है।
बचाव के लिए उच्च गुणवत्ता वाला, संतुलित आहार प्रदान करना, स्वच्छ भोजन और पानी सुनिश्चित करना, और अच्छी स्वच्छता बनाए रखना महत्वपूर्ण है। जैविक सुरक्षा के उपाय भी महत्वपूर्ण हैं ताकि हानिकारक सूक्ष्मजीवों को फार्म में प्रवेश करने से रोका जा सके। तनाव कम करना भी आंतों के स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद है।
14. अवियन ट्यूबरकुलोसिस (Avian Tuberculosis)
एवियन ट्यूबरकुलोसिस (Avian Tuberculosis), जिसे मुर्गियों का तपेदिक भी कहते हैं, एक पुरानी (Chronic) और गंभीर जीवाणु (Bacterial) बीमारी है जो माइकोबैक्टीरियम एवियम (Mycobacterium avium) नामक बैक्टीरिया के कारण होती है। यह बीमारी धीरे-धीरे बढ़ती है और शरीर के विभिन्न अंगों, विशेष रूप से आंतों, लिवर, प्लीहा (Spleen), और लिम्फ नोड्स (Lymph Nodes) में सूजन और घाव (Lesions) पैदा करती है। यह रोग मुर्गियों को बहुत कमजोर बना देता है और मृत्यु दर को धीरे-धीरे बढ़ाता है। यह बीमारी अधिकतर वयस्क पक्षियों में देखी जाती है।
संक्रमण आमतौर पर दूषित भोजन, पानी, या धूल के माध्यम से होता है, जिसमें बैक्टीरिया के कण मौजूद होते हैं। यह संक्रमित पक्षियों के मल-मूत्र से भी फैल सकता है।
लक्षण अक्सर धीरे-धीरे विकसित होते हैं और इसमें वजन कम होना, भूख न लगना, सुस्ती, कमजोरी, अंडे के उत्पादन में कमी, पीला या हरा दस्त, और सांस लेने में कठिनाई शामिल हो सकते हैं। पंख बेढंगे और गंदे दिख सकते हैं। शरीर में गांठें भी महसूस हो सकती हैं।
बचाव के लिए सख्त जैविक सुरक्षा और स्वच्छता उपाय आवश्यक हैं। नए पक्षियों को फार्म में लाने से पहले उनकी जांच (Testing) करवानी चाहिए। संक्रमित पक्षियों को तुरंत अलग कर देना चाहिए और मार देना (Cull) चाहिए, क्योंकि इस बीमारी का इलाज संभव नहीं है। मृत पक्षियों का सुरक्षित निपटान भी महत्वपूर्ण है। फार्म को अच्छी तरह से साफ और कीटाणुरहित करना चाहिए।
इलाज के मामले में, एवियन ट्यूबरकुलोसिस का कोई प्रभावी इलाज उपलब्ध नहीं है। एंटीबायोटिक्स बैक्टीरिया पर सीमित प्रभाव डाल सकते हैं, लेकिन वे पूरी तरह से ठीक नहीं कर सकते और प्रतिरोध (Resistance) भी विकसित हो सकता है। इसलिए, रोकथाम ही सबसे अच्छा तरीका है। नियमित स्वास्थ्य जांच और बीमार पक्षियों को तुरंत हटाना फार्म को इस बीमारी से बचाने के लिए महत्वपूर्ण कदम हैं।
निष्कर्ष
तो दोस्तों, ये थीं i14 प्रमुख बीमारियां जो आपके पोल्ट्री फार्म को प्रभावित कर सकती हैं। याद रखिए, रोकथाम हमेशा इलाज से बेहतर होती है। स्वच्छता, जैविक सुरक्षा, सही टीकाकरण, और नियमित निगरानी आपके पोल्ट्री फार्म को स्वस्थ रखने की कुंजी है। अपने पक्षियों के स्वास्थ्य पर ध्यान दें, समय पर लक्षणों को पहचानें, और पशु चिकित्सक की सलाह लेने में देरी न करें। आपके पोल्ट्री फार्म की सफलता आपके मुर्गियों के अच्छे स्वास्थ्य पर निर्भर करती है। उम्मीद है यह जानकारी आपके लिए उपयोगी साबित होगी। खुश रहें और खेती करते रहें!